जो नजीर सुप्रीम कोर्ट ने पेस की है, उसी तर्ज पर चीफ जस्टिस जैसे उदारता दिखाए
The mirror.
Dinesh Yadav
दीपावली पर मोहल्ले के बच्चे पटाखे चला रहे थे तभी बच्चों ने एक ऐसा पटाखा चलाया जिसे स्मोक बम कहते हैं, जिसमें रंग बिरंगा धुआं निकलता है, रंगीन धुंआ देखकर मुझे 13 दिसंबर 2023 कि वह घटना याद आ गई जिसमें दो युवाओं ने संसद सदन में अपने मिशन के लिए इस बम का उपयोग किया था, बाकी के उनके साथियों ने संसद परिसर में सरकार के खिलाफ नारेबाजी की थी, आप सभी को याद होगा, सागर शर्मा और मनोरंजन डी ने भारतीय संसद लोकसभा में देश की गंभीर समस्याओं को लेकर देशवासियों और सरकार का ध्यान आकर्षित कराया था, महंगाई, बेरोजगारी, तानाशाही, मणिपुर जैसी ज्वलंत समस्याओं का विरोध किया था, सारे देश ने देखा कि दोनों युवकों में से एक ने स्मोक बम का धमाका किया तो दूसरे ने संसद भवन की डेक्सो में उछल कूद करते हुए भारत माता के जयकारे लगाए, उन्हीं के अन्य साथी संसद हाउस के बाहर परिसर में कुम्हार समाज अति पिछड़ी जाति की बेटी नीलम आजाद ने विरोध प्रदर्शन करते हुए तानाशाही नहीं चलेगी, भारत माता की जय, जय भीम, जय भारत के नारे लगाए, उन सभी को यू ए पी ए याने की गैरकानूनी गतिविधियों अधिनियम 1967 के तहत गिरफ्तार कर किया गया था, वहां उपस्थित सभी संसद सदस्य एवं शासकीय अधिकारी यह समझ नहीं पा रहे थे कि ये युवा हैं कौन ? कौन सी बड़ी घटना करना चाहते हैं इनका क्या मकसद है, या कोई आतंकी तो नहीं है।

लगता है आंदोलित युवाओं ने इस घटना को बहुत ही सूझबूझ के साथ अंजाम दिया था, एक प्लानिंग के तहत घटना की स्क्रिप्ट घडी, घटना को करने वाले यह जानते थे की सुरक्षा कर्मी द्वारा उन पर प्राण घातक कार्यवाही कर सकते है, यदि कार्यवाही से बचेगे तो उन्हें किसी आतंकी संगठन का सदस्य ना मानलिया जाएगा, संसद परिसर से लेकर संसद हाल तक जो कैमरे लगे हैं वे सब सरकारी है, उनका उपयोग हमारे पक्ष में नही होगा, मीडिया के कैमरों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, उनकी सोच यह भी रही होगी कि जिन मुद्दों को लेकर वे आंदोलन रूपी घटना को अंजाम दे रहे हैं, उसकी सत्यता देश के सामने आएगी कि नही आएगी, इसीलिए उन्होंने अपने खुद के कैमरे की व्यवस्था पहले से कर रखी थी, हमारा उद्देश्य समय पर वायरल हो ताकि देश को घटना के सही कारणों की जानकारी हो सके, देश की समस्याओं व ज्वलंत मुद्दों पर जनता के साथ-साथ सरकार का भी ध्यान आकर्षित करना उनका मुख्य उद्देश्य था, यदि इतनी तैयारी से वे नहीं होते तो वह आज किसी आतंकवादी संगठन से जोड़ दिए जाते क्योंकि नए संसद भवन की रक्षा सुरक्षा को लेकर जितनी वाहवाही सरकार ने की थी।

इस घटना से सुरक्षा के मापदंडों में जो सेंद लगी उसने लापरवाही की सारी पोल खोल कर रख दी, सरकारी सुरक्षा व्यवस्था के विश्वास को बनाये रखने के लिए, सरकार उनके साथ वह सब करती जो कर सकती थी, घटना के बाद युवकों की गिरफ्तारी और उसके बाद देश की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए सभी पर कठोर जांच की कानूनी कार्यवाही की गई, उनके आगे पीछे की जीवन शैली की गतिविधियां का आकलन, उनके घर ठिकानों और बैंक अकाउंट की छानबीन से सारे साक्ष्य जुटाए गए तो जांच में सामने आया कि उनके बैंक अकाउंट के डेबिट क्रेडिट में कोई संधिकता नही पाई गई, घरों में रखी सामग्री क्रांतिकारी साहित्य व इतिहास की किताबों तक सीमित रही है, शहीद भगत सिंह, संविधान निर्माता बाबा भीमराव अंबेडकर, सावित्रीबाई फुले जैसे अनेक महानायक, समाज सुधारक, देशभक्त महापुरुषों से संबंधित साहित्य भरे पड़े मिले, जिससे यह साबित होता कि वे इन महापुरुषों से प्रभावित थे, साथ में युवा सोच युवा जोश स्लोगन उनको प्रेरणा दे रहा था, शायद वे इसलिए पूरी तैयारी में थे और सरकार की व्यवस्था के विरोधी रहे हैं,।
घटना को लेकर आतंक विरोधी गैरकानूनी गतिविधियों अधिनियम के तहत कार्यवाही कर उन्हें आरोपी बनाया लिया गया, पर अभी तक जांच में पुलिस को आरोपियों का कोई संबंध आतंकवाद संगठन या कोई राजनीतिक दल से किसी भी प्रकार का कोई कनेक्शन प्रमाणित नहीं हो सका, पूछताछ में उनके आसपास के निवासियों ने उन्हें सामाजिक संवैधनिक और वैचारिक चेतना का पक्षधर बताया।
युवती नीलम आजाद को मनरेगा मजदूरों का नेतृत्वकर्ता के रूप में पहचाना गया, किसान आंदोलन व कुश्ती खिलाड़ियों के आंदोलन का साथी बताया गया । घटना दर्शाती है कि वह सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ थे ज्वलंत मुद्दों पर सबका ध्यान आकर्षित करना ही उनका मुख्य उद्देश्य था, इसलिए उन्होंने यह रास्ता अपनाया, यह अलग बात है कि वह गैर कानूनी गतिविधियों के रास्ते पर चल पड़े। मैं इस रास्ते का समर्थक तो नही हूँ पर में उनके मुद्दों के साथ जरूर हूँ देश इन समस्याओं से अभी भी ग्रषित हैं पर सरकार मौन है, वे सभी उक्त घटना के कारण अपराधी बन गए पर उनके अंदर आपराधिक भावना दिखती नही हैं, उनके बगावती तेवर वाले विचारों ने उन्हें उसी तरह अपराधी बना दिया, जैसे शहीद भगतसिंह जी अंग्रेजों के लिए अपराधी थे पर देश के लिए आज भी वे महानायक हैं ।
घटना की रूपरेखा घर पर रखी क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह के साहित्य का कारण हो सकती, वे युवा यह भूल गए की 8 अप्रैल 1929 को जब शहीद भगत सिंह बाटकेश्वर दत्त ने केंद्रीय विधान सभा में अंग्रेजों के शासनकाल में दमनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाते हुए सदन में बम फोड़ा था तब पूरा देश स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के लिए संघर्षरत था, विशेष तौर पर देश का युवा शहीद भगत सिंह जी के क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित था, जिस दिन भगत सिंह जी को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर लटकाया था उस दिन देश का हर युवा यह एहसास कर रहा था कि वह फंदा उनके खुद के गले में पड़ा है। उसका परिणाम यह हुआ कि हर देशवासी स्वतंत्रता के लिए मर मिटने तैयार हो गया,
वर्ष 1929 की घटना और वर्ष 2023 की घटना लगभग मिलती-जुलती है सरदार भगत सिंह जी चाहते थे कि बम में सिर्फ आवाज हो किसी को कोई छति न पहुंचे, वैसे ही इन युवाओं ने भी स्मोक बम का चयन किया जिसमें सिर्फ आवाज और धुंआ हो किसी को कोई नुकसान ना पहुंचे, भगत सिंह ने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए इन युवाओं ने भारत माता की जय, जय भीम, जय भारत के नारे लगाए, भगत सिंह जी जैसे सभी ने स्वंम गिरफ्तारी दी और यह दर्शाने की कोशिश की कि हम आंदोलनकारी हैं ना की कोई आतंकवादी हैं, गिरफ्तारी के साथ-साथ उन्होंने अपने बयान में बेरोजगारी महंगाई तानाशाही मणिपुर जैसे जनहित के मुद्दों को भी फोकस किया, यह फर्क नजर आता है कि उस वक्त की मीडिया अंग्रेजों की नहीं थी इस वक्त की 95 प्रतिशत मीडिया सरकार की है जनता की नहीं हैं,
वर्तमान में देश का युवा जाति व धर्म में उलझा हुआ है, अमीरों को अपने धन को बचाने की पड़ी है तो गरीबों को अपने परिवार को पालने की पड़ी है युवाओं की स्थिति उस गाय के समान है जो भूखी है, चारों तरफ खाद्य पदार्थों के ढेर लगे होने के बाबजूद अपना पेट नहीं भर सकती, ऐसे ही अपनी आवश्यकता का भूखा बेरोजगार युवा हर तरफ आहार के ढेर की तरफ मुंह मारने की कोशिश तो करता है पर उसके पहले ही उसे डंडे या झूठे अदालती मामलों से जख्मी कर दिये जा रहा है इसीलिए उसमें वह शक्ति नही दिखती जो स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में देश के युवाओं के पास थी।
दो वर्ष होने जा रहे हैं जिन युवाओ ने जनहित में सभी की समस्याओं की लड़ाई लड़ी वे कानून में फसे आपराधिक जीवन गुजार रहे हैं पर उनकी कोई सुध नहीं ले रहा है, वे जिनके लिए लड़े आज उनकी कोई याद भी नहीं कर रहा हैं। सवाल वही है आजादी सबके हिस्से में होगी पर शहादत तो शहीद सरदार भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों की ही होगी । उस वक्त के तमाम उन युवाओं को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं जिन्होंने सरदार भगत सिंह जी की शहादत को अपने परिवार की शहादत का हिस्सा माना,
सरकार से मेरी अपील है कि 13 दिसंबर 2023 की संसद भवन की घटना के अभियुक्तों को इतना बड़ा अपराधी न माना जाए, जितना उन्हें बना दिया गया है, ये माना कि प्रदर्शन में उनसे अपराध हुआ है पर सच यह है कि उनकी भावना अपराधिक नहीं थी। संसद भवन में विरोध दर्शना आंदोलन था, ना की आतंकवादी हमला, यह भी सरकार की गलतियों के खिलाफ एक प्रतिक्रिया थी, दूसरी तरफ देखा जाए तो उन्होंने हमारी सुरक्षा की चूक में समीक्षा का भी अवसर दिया है, जो देश हित में है, चीफ जस्टिस पर जूते फेंकने वाले के खिलाफ अवमानना याचिका की कार्यवाही से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक नजीर पेश की हैं, कोर्ट ने सीजेआई कि उदारता को महत्वपूर्ण माना है, एवं दोषी के बचाव में पक्षधरो ने भी इसे क्रिया की प्रतिक्रिया का हवाला देकर दोषी का पक्ष लिया, इतनी बड़ी घटना की कार्यवाही पर विराम लगाया है तो ये उदारता उन युवाओं पर क्यों नहीं दिखाई जा सकती ? “क्षमा बड़ो को चाहिए, छोटन को उतपाद” वाली कहावत को मान्यता देते हुए, सरकार को चाहिए कि उदारता दिखाए अभियुक्तों को कानून से राहत दे, देश के सभी राजनीतिक दलों से अपील है कि वह इन युवाओं के संबंध में अपने विचार रखें,
मेरे भाव मेरे व्यक्तिगत विचार
दिनेश यादव
जबलपुर (मध्यप्रदेश)













राष्ट्रीय
राज्य
दुनिया
जीवन शैली
मनोरंजन
खेल





Discussion about this post